ख्वाहिशों की मौत-5

बीच में ही टोकते हुए चौधरी जी...........दिनेश के पिताजी से कहते हैं,,,,,,,ना जी ना........... मालिक हम मामा ही अच्छे हैं  दिनेश के........ और कुछ होगा तो वह भी बता दो या हम याद दिला दें कि, तुम स्कूल मास्टर से मिलकर आए और कल का बहाना बनाकर चार दिन घूमे थे।  सबको बोलते रहे हेड मास्टर रुकने का बोले हैं। अभी बहुत समय है, फिर कॉलेज का फॉर्म दो दिन रखें, और अप्सरी का फार्म भी मुझसे पहले सुनील जी (रोजगार कार्यालय का बाबू) ने आपको ही बताया था। तब भी आपने  ढील बर्ती I वह तो वक्त रहते हुए आखिरी तिथि से दो दिन पहले वह हमें मिल गया तो आज बेटा अफसर है। क्यों करते हो भाई ऐसा???? दुश्मनी है क्या बच्चों से??????? या दीदी झगड़ा करती है घर में,  जिसका गुस्सा बच्चों पर निकालते हो, माफ करो जीजा..... गलती हो गई हमसे जो हम आज भी बाईस का टिकट ले आए Iअब दो दिन बचा है....

एक तो बेटे की तैयारी कर लो या हम भी साथ चलते है, तो रात बैठक के बाद जितना दिल करे गाली दे देना जब हल्का हो जाओ तब बताना हम कुछ ना बोलेंगे। अरे यार टिकट पकड़ो और किसी को यह मत कहना कि यह टिकट हम लाए थे। हमने अभी तक किसी से कुछ नहीं कहा है। वह तो स्टेशन मास्टर दिख गए और उन्होंने आपका दोबारा कब आना बता दिया तभी हम समझ गए थे।  जनाब अभी तक सुधरे नहीं हो आप.... इसलिए ले आए। अब कहो कि गलती हमारी है, दुश्मन है हम तुम्हारे.............. दोनों बाप बेटे को अलग-अलग करने की साजिश रच रहे हैं  ना.... अजीब दिक्कत है यार पूरी दुनिया खुश है। भला एक आदमी को छोड़कर, अब क्या गले में बांधकर फिरेंगे बच्चों को, या बंदरिया जैसे चिपका के हर जगह घुमाएंगे। अरे बड़े हो गए हो... कभी ना कभी तो भेजना होगा और फिर अफसर बना है बेटा,  थोड़ी ना कोई देहाती मजदूरी के लिए जा रहा है......... ना जाने किस मुहूर्त में मेरे पिता ने तुम्हें हां कर दिया था  लक्ष्मी के लिए और वह तो भला था, दोस्ती थी हमारी और मैंने भी उनकी हां में हां मिला दी, जो एक बार सोच लिया होता ना तो कुंवारे फिरते अभी तक, कोई नहीं देने वाला था लड़की..... शुक्र मनाओ और धन्यवाद बोल, मेरे जैसा सच्चा दोस्त और मेरे घर जैसा ससुराल मिला है तुम्हें.....जो तुझे परेशान नहीं करता। अभी आकर चार दिन पड़ा रहूंगा ना सारी हेकड़ी निकल जाएगी। हां.. हां.. भैया... बीच में रोकते हुए, हां.... हां...... भैया बहुत एहसान किया, मालिक... चौधरी साहब............. तुम्हारे जैसे साले को पाकर हम धन्य हुए और धन्यवाद आपका जो हमारा परिवार बसा । अफसर के पिता भी है जो आप ना होते तो हम तो कुंवारे ही मर जाते। फिर न जाने कौन से सेठ से शादी करते अपनी बहन की......... अच्छा चलो छोड़ो और यह बताओ टिकट का किसी से बोले तो नहीं ना........ चौधरी मुस्कुराते हुए हाथ में टिकट दिया और कहा जनाब माफ करिए। इस बार नहीं कहा, अपनी शेखी बघार लीजिए और अब नहीं जा रहे हैं तुम्हारे घर, तुम्हारी बैठक तुमको मुबारक..... तभी बीच में दिनेश के पिता ने उसे प्यार से गले लगा कर चल रहने दे। अब नाटक मत कर, एक तू ही तो है जो मेरे दिल का हाल जानता है, मन नहीं मानता यार तू तो जानता है ना खदान का काम इसलिए चिंतित था.....चल घर चलो.....

क्रमशः........

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1 Comments

Gunjan Kamal

22-Nov-2023 03:16 PM

👏🏻👌

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